सोमवार, जनवरी 21, 2008

संदेस

चाँदनी में लिपटे
कुछ
ख्वाबों को भेजा है
पास तुम्हारे।

रात के अंधेरे में
चाँद पाएगा एकाकी तुम्हें
रखेगा हौले से ख्वाब मेरे
तुम्हारी पलकों पर

और जवाब में लाएगा
वो तुम्हारी सिहरन
हलकी सी मुस्कान की
वो मिसरी
नमी तुम्हारे आँखों
के कोरों की

मैं चाँद को निहारती
चाँदनी को हथेली में मलती
तुम्हारे सपनों को ढालूंगी
अपनी आँखों में।