नोर्थ बे और रोस आईलेंड की यात्रा के बाद लगा कि अंडमान के जंगलों को भी देखना चाहिए.यहाँ पर हर तरफ पेड़ ही पेड़ दिखते हैं . फिर दो दिन लगातार यह छोटी समुद्री यात्राएं करने के बाद थोडा ज़मीन पर चलने का मन भी कर रहा था. पोर्ट ब्लेर में बहुत कुछ देखने को है. चैथम सौ मिल ,बड़ी पुरानी लकड़ी की मिल है.पर अफसोस उस दिन बंद थी. पर उसको छोड़ हम आगे बढे अंडमान,निकोबार द्वीपों की दूसरी सबसे ऊंची पहाडी चोटी माउन्ट हेरियट की ओर . वैसे तो यह पोर्ट ब्लेर से ५५ किमी दूर है ,लेकिन नाव से जाने में सिर्फ २० मिनट में वहां पहुंचा जा सकता है. चैथम घाट से दूसरी पार , बैम्बू फ्लेट तक हम नाव से गए. हम ही नहीं हमारी गाडी भी साथ में उसी नाव में हो ली. यह फेरी वहां के निवासियों के लिए बस सेवा की तरह है . सब अपनी कार,स्कूटर,मोटरसाइकल उसी पर चढ़ाकर इधर से उधर जा रहे थे .
बम्बू फ्लेट भी एक छोटा कस्बा सा है जहां से हम चले माउन्ट हेरियट की ओर. रास्ते में पार किया एक प्राइमरी स्कूल .
आगे जाकर ड्राइवर ने गाडी रोक एक किनारे लगा दी और नारियल के बीच समुद्र,दूर दिखते दो टापू और एक लाइटहाउस की तरफ इशारा किया. बोला फोटो खींचिए और फिर देखिये क्या पहचानी सी लग रही है. हम ने खींच ली और ध्यान से देखा. खैर सिर खुजाते रहे ,पर कुछ पहचान नहीं आया . उसी ने बताया कि बीस रुपये के नोट पर यही दृश्य छापा जाता है! अद्भुत !आगे बढे तो माउन्ट हेरियट का चेक पोस्ट था.नाम पता लिखवाया गया,कुछ प्रवेश शुल्क अदा किया और फिर चले अन्दर . वैसे यहाँ पर गाडी रोक कर आगे तक ट्रेकिंग की जा सकती है. पर हम गाडी और पहुँच गए माउंट हेरियट . यहीं पर एक तरफ बैठने के लिए मचान सी बनी थी. हम लोग तो आगे बढ़ गए पर परिवार के बुज़ुर्ग वहीं बैठकर आसपास के प्राकृतिक सौन्दर्य का मज़ा लेते रहे.मचान से नीचे उतर कर हमने ट्रेक शुरू की. यहाँ ट्रेकिंग की दो मंजिलें हैं. छोटी करीब डेढ़ किमी वाली कालापत्थर तक और लम्बी , मधुबन और समुद्र तट तक . हम पगडंडी से अन्दर घुस गए. पूरा रास्ता सिर्फ पेड़,जंगल, तरह तरह के पौधे. ऊपर पेड़ों की चलनी से छन छन कर आती धूप ,नीचे धूप छाँव से बनते छायाचित्र .करीब आधे घंटे बाद लगा वापस चलें . लौटने के लिए मुड़े तो देखा एक लड़का बड़े ध्यान से ज़मीन में लताओं को देख रहा है. पूछा तो उसने इशारा किया ,एक हरा सांप वहां लेटा था.
हम भी रुक गए. उसने सिर उठाया ,फन फैलाया ,इधर उधर देखा और आगे बढ़ गया. यह भी अच्छा रहा . वनस्पति की इतनी विविधता दिखाई पडी. कोई पेड़ किसी और का सहारा ले आसमान छूना चाहता है, कहीं जड़ ही आकाश की तरफ उठ गयी .वापस आकर कुछ देर उसी मचान पर बैठकर आराम से चारों के दृश्य देखते रहे. हरियाली को आँखों में बसा लेने का प्रयास. अब तक भूख लगने लगी थी और वापस चैथम की फेरी पकड़नी थी.