गुरुवार, मार्च 08, 2018

महिला दिवस पर ख़ास

हम हैं तो दुनिया हैं,
हम हैं तो रंग हैं ,
हम है तो जीवन चक्र है
हम हैं तो सहारे हैं।
 हम से ही परम्परा है
 हम से ही नवीनता है
हम से ही स्थिरता है
हम से ही हैं नयी उड़ानें।
हम से  रास्ते के उजाले हैं
हम में अंधेरों के गलियारे हैं।
हम से कायम हैं रिश्ते बहुत
हम से अपना रिश्ता है अहम बहुत ।
हम से रसोई की आग है
हम कर सकते हैं काज बहुत।
हम दिल के हाथों मजबूर हैं
हम दिल के बहुत मज़बूत हैं।
हम से ही हमारी पहचान है
हम नारी हैं ,
हमारी आवाज़ है,
हमारी आशा  है ,
हमारी शक्ति है,
हमारी सोच है
हमारा सम्मान है।

शुक्रवार, जनवरी 19, 2018

हमारे सिम्बाजी

कल रात सिम्बा नहीं रहा। वहां चला गया जहाँ उसे कोई कष्ट नहीं होगा। बीमार और कष्ट में तो वह कुछ महीनों से था पर पिछले एक महीने से अपने आप उठने में असमर्थ था। उसके पिछले पैर अशक्त हो गए थे और उसे उठाना पड़ता था। उसकी विवशता बहुत दुखदायी थी।पर उठाने  के बाद वह वही पुराना जोशीला सिम्बा हो जाता,हर चीज़ को सूंघना,बिस्किट खाने की ज़िद करना,रसोई के दरवाज़े पर बैठ खाने का इंतज़ार  करना या हमारी गोद  में सिर रख देना।  पिछले दो दिन से अचानक उसके सामने के पैर  भी जवाब दे गए और जब हमने डॉक्टर को दिखाया तो उन्होंने ने कहा इसका जीवन काल यही तक है। उसे एक हफ्ते का समय दिया और हमें सलाह दी कि हम सिम्बा को उसके कष्ट से मुक्ति दिलाने के लिए  उनकी मदद से सुला दें। यह एक ऐसा निर्णय था जो हम ले पाने में बिलकुल असमर्थ थे। यह जानते हुए कि इसमें उसकी भलाई  ही  है। पर विशाल दिल वाले यह भांप जाते हैं। बीमारी हालत में भी सिम्बा हमारी कश्मकश को समझ गया और शाम को कुछ कष्ट और तकलीफ के बाद  रात में ही वह हमें छोड़ गया। ग्यारह साल बाद आज पहला सवेरा उसके बिना। उसके भौकने  की आवाज़ का भ्रम होता है,रात में उसके होने का आभास बना रहा। परिवार के सदस्यों को खालीपन लग रहा है पर सबसे अधिक लग रहा है  हमारे साथ रहने वाले सफरुद्दीन को जो पिछले छह साल से उसकी देखभाल अपने बच्चे से भी बढ़ कर करता। उससे बातें करता,उसे डांटता,उसके घाव की सफाई करता,दवा खिलाता घुमाने ले जाता,नहलाता। छुट्टी  से लौट कर आता तो स्टेशन से  सीधे पहले सिम्बा से मिलता। उसे घुमाने ले जाता फिर सामान रखता। जो भी हमारे घर आता सिम्बा से प्यार करने पर मजबूर हो जाता। दो साल पहले वह  सिम्बा से सिम्बाजी हो गए ,वरिष्ठ सदस्य होने के नाते।
आभार है उसका हमारे जीवन को अपने प्यार, अपनी उपस्थिति से भरने का और अंत में भी हमें महफूज़ रखने का।


यह नीचे का लेख नवम्बर 2016   में लिखा था पर व्यस्तता के कारण यहां डाल  नहीं पायी ! आज उसकी याद में नम  आँखों से उसे समर्पित !  

इस महीने हमने एक विशिष्ट जन्मदिन मनाया। हमारा  सिम्बा दस   साल का हो गया । वो फर का गोला अब बूढा हो चला। कुत्तों के लिहाज़ से दस  साल वृद्धावस्था है। खास कर उस जैसे बड़ी कद काठी वाली नस्ल के लिए जिनकी उम्र कम ही होती है।अब उसकी हरकतों में भी बुढ़ापा झलकता है। रात में कराहता है। कई कई बार उठता है। वो हमारे ही कमरे में सोता है और मैं महसूस करती हूँ कि वह बहुत चहलकदमी कर रहा है। कई बार मेरे सिरहाने अपना मुंह रख देता है। मनुष्यों की तरह ही हर कुत्ते की अपनी अलग आदतें और व्यक्तित्व होता है। सिम्बा कभी बिस्तर पर सोना नहीं चाहता। उसका अपना एक गद्दा है और अगर रात में वह नहीं बिछा है तो वह दरवाज़े पर खड़ा होकर या तो इंतज़ार करेगा या फिर शिकायत भरी दृष्टि से हमें देखेगा। उसको लोगों के साथ रहना अच्छा तो लगता है पर अपना एकांत भी प्यारा है। लिहाज़ा वह कुछ देर पास बैठने के बाद या फिर प्यार दिखाने के बाद  दूर चला जाता है। यही हाल होता है जब घर में मेहमान आये हों। हम अगर उसे घर आने वाले हर आगंतुक से न मिलवाएं तो वह नाराज़ हो जाता है। इसमें परेशानी यह होती कि है हर मेहमान सिम्बा की नज़दीकी से सहज नहीं होता। जबकि वह है कि  सिर्फ सूंघ कर सबसे जान पहचान कर एक किनारे बैठ जाता है। वह सेंट बर्नार्ड है जो देखने में भारी भरकम होते हैं पर दिल के बहुत कोमल। उसे देखकर लोग डर जाते हैं। पर उस सफ़ेद और काले बाल वाले भीमकाय शरीर में धड़कता दिल बहुत प्यारा है। उस प्यार का इज़हार भी पल पल  में करता रहता है। आप कहीं भी बैठे  हों अचानक  आपकी गोद में एक गुदगुदी सी होगी। धीरे से एक नाक ,फिर एक सिर आपकी गोद में आएगा और फिर पूरा शरीर उसमें बैठने की कोशिश कर रहा होगा। सोचिये एक ५५-६० किलो का वजन किसी भी तरह उसमें समाने की कोशिश कर रहा हो।  अगर आप उसे सहलाते नहीं तो वह पंजा मारकर आपको अपने होने का एहसास दिलाएगा । यह स्नेह खाना खाने के बाद और भी मुखर हो जाता है। अभी तो वह सिर्फ गोद में सिर रख देता है या पास आ कर सटता जाता है। पर एक साल पहले तक वह अपनी गीली दाढी लिए ऊपर ही चढ़ जाता था। और दो पैरों पर खड़ा सिम्बा हम से लम्बा ही है। वह उछल कर हमारे कन्धों पर अपने आगे के दोनों पैर टिका देता और चाहता कि हम उस सहलाएं या गले लगाएं । हम सब सावधान रहते हैं उसे प्यार वाले मूड देखते थे तो जाते  या तो ज़मीन पर पैर जमा देते। नहीं तो गिरना पक्का था।
     मुझे याद आ रहा है। वह तीन महीने का था जब  हमारे पास आया था। उस समय परिस्थितयां ऐसी विषम हीं कि मैं उसे घर में लाने के निर्णय से बिलकुल  सहमत  नहीं थी और नाराज़ भी। पर कुछ ही महीनों में  वह  झबरीले  पिल्ला  दिल में आकर बैठ गया। वह  इस बात से ज़रा भी निरूत्साहित  नहीं था कि मैं उससे रूखा व्यवहार कर रही हूँ।  वह पूंछ हिलाते प्यार के लिए पहुँच ही जाता। तब से  वह परिवार का सदस्य है और अपने को हमसे अलग नहीं मानता। वह  हमारी हर गतिविधि में शामिल होता है। अगर बाहर जा रहे हों तो पहले कार के पास खड़ा हो जाता है। यह मुमकिन नहीं कि उसे हर जगह ले जाया जाए पर उसे घर छोड़ते हुए जितनी निराशा उसे होती उससे कहीँ अधिक दुःख हम सबको। खासकर जब हमें कहीं शहर से बाहर जाना होता है । उस तक यह बात पहुँचाना असंभव है की हम अमुक दिन वापस आएंगे। वह भी  मुँह लटकाकर बैठ जाता है और  उसकी पूँछ  पैरों के बीच छुप जाती है। अगर उसने कहीं सूटकेस देख लिया तो उसकी बैचैनी का कोई अंत नहीं।  वह उसी के पास बैठा या लेटा रहेगा। वैसे अगर घर में किसी की तबीयत खराब होती है तो भी वह उस सदस्य के पास से  नहीं हटता है।
   सेंत बर्नार्ड नस्ल के कुत्ते स्विट्ज़रलैंड में पाये जाते हैं और उनके बारे में मशहूर है कि वह पहाड़ों में बर्फ में दबे लोगों को खोजने में बहुत मदद करते थे।इनकी सूंघने की शक्ति बहुत विक्सित है और यह बर्फ में बहुत नीचे दबे लोगों का भी सूंघ कर पता लगा सकते हैं। एक से डेढ़ फुट ऊंचा,लंबे बालों वाला ,शक्तिशाली और वजनदार  यह कुत्ता बहुत ही नरम,वफ़ादार और दोस्ताना मिजाज़ का होता है। इसके बाल काले और सफ़ेद होते हैं या फिर भूरे और सफ़ेद होते हैं। हमारा सिम्बा काला और सफ़ेद है। उसे देख कर लगता कि वह अपना कम्बल साथ ले कर चल रहा हो। उसकी दुम काफी घनी और दमदार है और अगर सिम्बा ने खुशी से पूंछ घुमाई तो समझ लीजिये कि आसपास रखी चीज़ें तो ज़रूर टूटेंगी।
    एक बड़ी दिलचस्प बात यह भी है कि उसे भुट्टे खाने का बड़ा शौक है। वह बड़े चाव से खाता है और अगर हम भुट्टा खा रहे हैं तो वह घर में वह कहीं भी है ,दौड़ा चला आएगा। इसलिए जब भी भुट्टा आता है उसके लिए अलग से एक आता है। वैसे वह दूध रोटी  ,दही,पनीर का पानी और मटन पसंद करता है। उसकी एक अच्छी आदत है  कि वह बड़े ही अनुशासित तरीके से अपने नियत समय , खाने वाली जगह पर ही खाना खाता है। सवेरे छह बजते ही वह अपनी नाक मेरे मुंह के पास सटा देता है। हमारा मॉर्निंग अलार्म वह ही है। चलो मुझे बाहर निकालो , घुमाओ और मेरा खाना दो।
   हमें लगता है कि हमारी दिनचर्या उसी के इर्द गिर्द घूमती है। थोड़ी देर के लिए  दिखाई न पड़े तो उसकी खोज शुरू हो जाती है। सब लोग ऑफिस से लौटने पर सबसे पहले उसको सहलाते हैं नहीं तो वह अपने भौंकने के अंदाज़ से नाराज़गी जता देता है। कोई कितना भी  परेशान हो ,परिवार के इस सदस्य का दुलार हर पीड़ा को हल्का कर देता है। प्यार भी बिलकुल अथाह और बेशर्त। वह बूढा होने पर भी बच्चा है ,हमारी भाषा न बोल पाने के बावजूद सर्वाधिक अभिव्यंजक है और सच तो यह है कि उसके बिना सब कुछ अधूरा लगता है।